सच्चा पथिक
कर्म को जो पहचान ले, है
योगी सच्चा वही,
पल पल चले, ठहरे नहीं, है
बटोही सच्चा वही|
जो लक्ष्य को साधे चले,
अवरोध से भी ना रुके,
जीवन पथ पर, हे मनुज! है
पथिक सच्चा वही||
ग्रीष्म में मुरझाये
जो, शरद में गल जाय जो,
मझधार देख मुड़ता
रहे, वह बटोही सच्चा नहीं |
चलते घिरे, फिर भी
उठे, है बटोही सच्चा वही,
संघर्ष से जो बढ़
रहा, है पथिक सच्चा वही ||
वार्णित चाहे हो ना हो, सुन
बटोही यह गाथा तेरी,
चलता ही चल, निरंतर तू चल,
ठहरना तुझको है नहीं |
किवदंतियों में हो
सुसज्जित, चाहे अतीत में धूमिल सही,
संघर्ष से जो बढ़ रहा, है
पथिक सच्चा वही ||
मिले गिरी तू, पार
कर, तू पार चल, चाहे सरित मिले,
चलता ही चल तू हे
मनुज! चाहे लक्ष्य मिले या ना मिले,
जीवन है निरंतर ही
चलना, चाहे कंटक चुभे या कुसुम खिले,
श्रृष्टि देख होगी
यह हर्षित, पद-चिन्ह जब तेरे जग को मिले ||
चलते घिरे, फिर भी
उठे, है बटोही सच्चा वही,
संघर्ष से जो बढ़
रहा, है पथिक सच्चा वही ||