कभी कोई-कभी कोई, दिल में तब, अब कोई,
कोई बैरन हवा थी वो, गई जगा उमंग सोई
|
कभी इस पर, कभी उस पर, मचल जाता है ये
यूँ ही,
दिल बगिया है बहारों का, इसमें कभी
कोई-कभी कोई ||
घटायें पर्वतों की अब, उठती हैं, मेरे
मन से,
झरने फूटते हैं, चाहतों के अब, मेरे
मन से |
कोई पागल न कर दे अब, कहता हूँ अब
तुमसे,
मेरी राहें ही हैं तुझ तक, यही मानूं मैं अब दिल से
||
दिखें चेहरे अंखियों से, लगे अपना हर
कोई,
कभी कोई-कभी कोई, दिल में तब, अब कोई
||
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